मैं पागल अल्हड़ मस्ताना
अपनी ही धुन का दीवाना
दुनिया की मुझको सुध नही
गाता हूँ अपना अफसाना
मैं पागल अल्हड़ मस्ताना
बेखबर राहों पे अड़ा हूँ मैं
कई नदियों पे चला हूँ मैं
खुदकी सुनना और खुदपे हँसना
बाँकी सबसे प्यार जताना
मैं पागल अल्हड़ मस्ताना
इन सरसराती आवाजों में
यूँ चहचहाती फ़िज़ाओं में
घने जंगलों से होके चला मैं
खुदको मुझे है आज़माना
मैं पागल अल्हड़ मस्ताना
हैं राहें ये मेरी राहगुज़र
मंज़िल की मुझको क्या खबर
अपनी धुन में जो चलता रहता
मैं मेरा साथी हूँ रोजाना
मैं पागल अल्हड़ मस्ताना
ढूंढता हूँ खुदको मैं अब
शायद कहीं मैं पालूं कुछ
हस्ती मेरी मुझे मालूम नही
पर मिजाज है मेरा आशिकाना
मैं पागल अल्हड़ मस्ताना
After a long time . A long break i am back to my blogs and writing. My passion..