जो तुम रोक लो दो पल क़याम करता चलूँ
तुम्हारी नज़रो में खोकर मैं शाम करता चलूँ
तेरी दिल्लगी को जाना तो ये दिल की लगी हो
तेरी बातों को सुनना मेरी आशिक़ी हो
न रह पाने का गुमशुम अगर तज़ुर्बा हो तुम्हे
तो मेरे साथ चलना ओर फासले मुल्तवी हो
तुम्हारी हाथों के छुवन को पैगाम कहता चलूँ
जो तूम रोक ले मुझको दो पल क़याम करता चलूँ
.
मिलने की फिर से अगर तेरी ख्वाइश हो
ज़माने भर से हो रंजिश घटा कैसी भी छायी हो
अगर दीदार की खातिर कहीं जाना पड़े तो
थोड़ा तुम सफर करना थोड़ा साथ तन्हाई हो
फिर मिलूं तो तेरे अरमानों का एहतराम करता चलूँ
जो तुम रोक लो मुझको दो पल क़याम करता चलूँ
.
तुम्हारी बाहों के घेरे में मेरा अपना बसेरा हो
तुम्हारी जुल्फों के नीचे मेरा हेर सवेरा हो
तुम्हारी नज़रों में देखूं यहां मैं ये दुनिया सारी
हमेशा साथ रहूँ तेरे मौका चाहे अन्धेरा हो
की बस तुझको चाहने का इल्जाम करता चलूँ
तेरे बेपरवाह ख्यालों का गुमान करता चलूँ
जो तुम रोक लो मुझको दो पल क़याम करता चलूँ
.
©वैभव सागर